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" दादी : नानी की पुटलिया से " { यानि आप का घरेलू औषधालय }

" दादी : नानी की पुटलिया से " { यानि आप का घरेलू चिकित्सालय }

"" हमारी परम्परा में लोक - कल्याण का बहुत कुछ ऐसा है जो हमें स्वः निर्भर बनाता है और उस ''प्रकृति '' से भी जोड़ता है |'' प्रकृति ''ने हमारे इर्दगिर्द इतनी अकूत सम्पदा बिखेर दी है कि यदि हम सभी दोनों हाथों से उसे पूरा जीवन समेटते रहें तब भी हम उसका सहस्रांश भी नहीं सहेज पाएंगे | ""

यह आमुख वार्ता हमारे और आप के बीच एक तारतम्य और तादाम्य स्थापित करने और आप को इस तथ्य और सत्य से अवगत करने हेतु भी है '' इतने ज्ञान मात्र से ही आप एक सफल वैद्य या चिकित्सक अथवा डाक्टर नहीं बन जाते हैं " यह सब ज्ञान केवल आप कि सहायता प्राथमिक चिकित्सा के रूप में करता है जब असमय कोई मौसमी पीड़ा अथवा खान- पान की लापरवाही से कोई पीड़ा उभर आवे और आप के आस - पास कोई चिकित्सक उपलब्ध न हो तो इन का प्रयोग आप को तात्कालिक राहत देता है

हमारी परम्परा में लोक - कल्याण का बहुत कुछ ऐसा है जो हमें स्वः निर्भर बनाता है और उस ''प्रकृति '' से भी जोड़ता है |'' प्रकृति ''ने हमारे इर्दगिर्द इतनी अकूत सम्पदा बिखेर दी है कि यदि हम सभी दोनों हाथों से उसे पूरा जीवन समेटते रहें तब भी हम उसका सहस्रांश भी नहीं सहेज पाएंगे |
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"राम कथा " के सन्दर्भ में पद्म पुराण


आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञानं नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात ''जीवन- का -विज्ञानं है''



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marquee class="scrollamount="2"" direction="left" onmouseover="this.stop()" onmouseout="this.start()">आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञानं नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञानं'' है /marquee>

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किसी
घटना के घटित होने का सबसे सटीक प्रमाण {साक्ष्य} उस घटना के वास्तविक प्रत्यक्षदर्शी द्वारा किया
गयावर्णन { चश्मदीद गवाह } होता है ;किसी प्रत्यक्षदर्शी के उपलब्ध होने की अवस्था में उस घटना
काल .के हीकिसी व्यक्ति द्वाराउपलब्ध विवरण को ही घटना का प्रमाण {साक्ष्य} मान लिया जाता है । यह उसी
प्रकार है जैसाकिसी पत्रकार द्वारा घटना के कुछ समय बाद ,घटना स्थल पर जाकर प्रत्यक्षदर्शीयों से संपर्क कर
घटनाकाविवरण लिखना { वास्तव में इतिहास लिखना }इसी प्रकार के कई तरीके होते हैं । अब तत्काल जा कर
रिपोर्टिंग करना एवं सौ साल बाद घटना का विवरण या इतिहास लिखना किसे ज्यादा प्रमाणिक माना जायेगा ? "राम कथा " के सन्दर्भ में सबसे ज्यादा प्रमाणिक साक्ष्य "वाल्मीक रामायण "के कथन को स्वीकार किया जाना
चाहिए :क्यों कि यह एक स्थापित एवं स्वीकृत सत्य //तथ्य है कि महार्षि वाल्मिक तथा राम सम कालीन थे
(राम बाद के थे )। रही पद्मपुराण कि बात तो शास्त्रों का कथन है कि पुराण शाश्वत-सनातन हैं ,केवल प्रत्येक
युगके द्वापर में एक वेदव्यास जन्म {अवतरित हो } लेकर वेदों _पुराणों का सम्पादन करते हैं । इन सब के
विषय मेंबहुत कुछ कहा जा सकता है ,परन्तु वह विषय से भटकना होगा । हाँ पद्म पुराण को प्रमाण माना
जासकता है ।बाक़ी सभी ग्रन्थ इन्ही कीछाया- प्रति छाया मात्र हैं । प्रत्येक" राम चरित्र कथन '' (दूसरे शब्दों में रामायण )जिनका सम्बन्ध राम कथा के मार्ग से है ;में कुछ स्थानीय एवं क्षेत्रीय किवदंतियों तथा
मान्यताओं के परिपेक्षों मेंकुछ अतिरिक्त वर्णन अवश्य आ सकता है । रहा पद्म पुराण एवं कम्बन रामायण के
उद्धरणों का उच्चतमन्यायलय में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करना तो चलिए इसी प्रकार ही सही कम से कम
शासकीय व न्यायालयीस्तर पर " राम"के अस्तित्व को किसी रूप में माना तो गया तथा इसी के साथ ही साथ
पुराणों को इतिवृति अर्थात"इतिहास "ग्रन्थ की मान्यता ही मिली ,चाहे सीमित रूप में ही सही। हम बचपन से कथा-किवदन्तियों केरूप में सुनते आये थे कि राम ने रावणवध के पश्चाद्अयोध्या लौटते समय रामसेतु को कई स्थानों पर अपने धनुष द्वारातोड़ डाला था ,
क्यों कि स्थानीय लोगों को भय था कि आवागमन के साधन सुलभ हों ने से ,बल शाली राक्षससमुन्द्र के इस पार
आ कर जनसामान्य को आतंकित एवं पीड़ित करेंगे ;बडे हुये तो राम-कथाओं के मत-मतान्तर एवं पठ्यान्तरों आदि का ज्ञान हुआ । अब बात करें सरकार द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत शपथपत्र मेंउल्लिखित साक्ष्यों का ;तो चलिये इसी आधार पर ही सही इस सरकार ने "राम के होने को " तार्किक साक्ष्यों {सरकमस्टेन्सियल इविडेन्सों } के आधार पर ही मानतो रही है । आगे रामसेतु निर्माण से जुड़े कुछ तकनिकीपक्षों पर चर्चा करूंगा ।
अगर हमें घर या मकान बनवाना होगा तो हम क्या करेंगे ? ? ?
सर्व प्रथम यह सोचेंगे कि > हम क्या चाहते है ,>और जो हम चाहते हैं उसके लिये किस-किस वस्तु की अवश्यकता पडेगी और सबसे महत्वपूर्ण बात /तथ्य >>> कि जो कार्य करना चाहते हैं उसे करने की योग्यता हम में है ::उस में हम सक्षम हैं ??? क्यो कि हम सक्षम नही होते इस कारण से "योग्य एवं सक्षम "व्यक्ति जिसे 'इन्जीनियर आर्किटेक्ट' कहतें हैं को ढूंढ कर उस की सलाह एवं दिशा निर्देशन में हम इच्छित कार्य करते कराते हैं। रामायण में स्पष्ट उल्लेख है कि समुन्द्र जब मार्ग देने के लिये क्षमा मांगने आया तो ,उसने राम की सेना में शामिल दो वनार्य { वानर } भाईयों जो "नल एवं नील "नाम के थे के बारे बताया कि वे इस विषय में पारंगत हैं कि जल पर सेतु किस प्रकार बनाया जा सकता है अर्थात 'नल-नील ' दोनो ''आर्कीट्रेक्चरेल इन्जीनियरिंग '' के विशेषज्ञ वह भी पुल /सेतु बन्धन के अर्थात रामसेतु कोई ''छूमन्तर'' सेनही बनाया गया था और
रामसेतु के निर्माण की प्रक्रिया का जो वर्णन ग्रन्थों में मिलता है मात्र वही और उल्लिखित निर्माण स्थल पर मिलने वाले अवशेष ही ''राम के अस्तित्व एवं राम कथा की सत्यता '' को सिद्ध करने के लिये पर्याप्त हैं ; केवल हमारे ''तथाकथित '' विद्वानों एवं विशेषज्ञों को '''राम एवं राम कथा के प्रति अपने-अपने ''पूर्वाग्राहों ''का त्याग करना पढेगा ''' गम्भीर ,गहन एवं सूक्ष्म अध्यन बताता है कि 'सेतु ' निर्माण हेतु पहले थोस धरातल ढून्ढा गया जहां तक मुझे पुस्तकीय ज्ञान है , सुदूर दक्षिण भारत का निर्माण ज्वालामुखीय पदार्थ से निर्मित है , अभी सम्भवतः गतवर्ष ही मैने समाचार पत्रों में पढा था की धुर-सुदूर दक्षिण पूर्व में लक्षद्वीप समूह के किसी में द्वीप ज्वालामुखी फटा है अतः झावां पत्थर जो पानी पर उतरा सकते हैं उस क्षेत्र में अवश्य मिलने चाहिये ,







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साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद "हिन्दू आतंकवाद" शब्द चर्चा में है. मैं कई अखबारों के लिए कालम लिखता हूं तो मुझे कहा गया कि आप इस बारे में कुछ लिखिए. लोग जानते हैं कि मैं आजन्म कैथोलिक ईसाई हूं, लेकिन २५ सालों तक दक्षिण एशियाई देशों में रहकर फ्रांस के अखबारों के लिए काम किया है इसलिए मैं इस भू-भाग मैं फैली हिन्दू संस्कृति को नजदीक से जानता समझता हूं.
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बधाई

अभिनव बिन्द्रा द्वारा बीजिंग ओलम्पिक में 10 मीटर एयर रायफल शूटिन्ग स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने का समाचार प्राप्त होने पर काफी देर तक समझ में ही नही आया कि अपनी प्रतिक्रिया क्या दूं कैसे दूं ''आत्मा गहराई तक अभिभूत थी ,बुद्धी या मस्तिष्क जो भी कहें ऐसा सुन्न सा हो गया था कि कोई प्रतिक्रिया देने में अपने आप को असमर्थ पा रहा था , जैसे किसीने उसे ......
                                                    बस अब और कुछ नही

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